आज उन्हें अनुभव हो रहा था कि मनुष्य का सहज मन प्रकृति ने कुछ ऐसा बनाया है कि त्रिकालसत्य आदर्शों पर स्वयं चलने का तो वह साहस ही नहीं करता, अपने प्रियजनों को उन आदर्शों की ओर बढ़ते देख कर भी कोई प्रसन्न नहीं होता...राम, राज्य को त्याग कर वनवास के लिए चले गये थे। तो दशरथ उनके त्याग से प्रफुल्लित नहीं हुए थे।