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‘‘जाओ, गंगा में खड़े होकर मैं तुम्हारे माध्यम से पूरी नारी जाति को शापित करता हूँ कि आज से कोई बात उसके पेट में कभी पचेगी नहीं।’’
प्रलय (कृष्ण की आत्मकथा-VIII)
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