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‘‘अस्त्र खरीदना उनकी अनिवार्यता है; जबकि मूर्तियों के लिए उनकी कोई अनिवार्यता नहीं। वह तो उनके लिए एक सजावटी वस्तु है। विलासिता की अनिवार्यता से जुटती है। इसलिए अस्त्र जितने बिकते हैं, मूर्तियाँ उतनी नहीं बिकतीं; जबकि मूर्तियाँ जनता भी खरीदती है।’’
प्रलय (कृष्ण की आत्मकथा-VIII)
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