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‘‘मैं आपकी छाया हूँ। जैसे अँधेरे में छाया वस्तु में समा जाती है वैसे मैं भी आप पर छा रहे अंधकार के समय अब आपमें समा रहा हूँ।’’
प्रलय (कृष्ण की आत्मकथा-VIII)
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