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कभी शरीर से अलग होकर भी तुमने स्वयं को देखा है? तुम एक ज्योतिपुत्र हो। अनंत असीम शक्ति तुममें है। शरीर के बंधन में बँधकर तुम बहुत छोटे हो गए हो। तुम शरीरी हो, पर तुम स्वयं को शरीर ही समझते हो। शरीर तो मृत्युलोक का दिया तुम्हारा वस्त्र है। अपनी इच्छानुसार काल इस वस्त्र को उतार भी सकता है, या जीर्ण होने पर तुम स्वयं इसे उतार दोगे। तो तुम अभी से उससे अलग होने का अभ्यास करो। सारा भय तुम्हारे इस शरीर तक है। निर्भय होने के लिए तुम इससे अलग होकर देखो। शायद तुम यह नहीं जानते कि तुम्हारा यह शरीर पूरे ब्रह्मांड में एक छोटा सा जीव है; जबकि तुम्हारे भीतर भी एक ऐसा ही ब्रह्मांड है।’’
प्रलय (कृष्ण की आत्मकथा-VIII)
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