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इतना सुनते ही मुझे रोमांच हो आया। मेरा तन-मन दोनों सिहर उठा। मुझे लगा कि मैंने उसे छोड़कर अच्छा नहीं किया। उसके प्रेम के साथ धोखा हुआ। पर उसके प्रेम की विह्वलता इस धोखे को भी स्वीकार नहीं करती। फिर भी कोई उलाहना नहीं, एक अटल विश्वास के साथ दत्तचित्तता, निश्चय ही उसका प्रेम तो राधा आदि गोपियों के प्रेम से भी महान् है।
प्रलय (कृष्ण की आत्मकथा-VIII)
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