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‘तुम कर्ण को क्या समझती हो, कुंती!’ इंद्र ने कहा, ‘जो झूठ न बोलता हो, जिसमें सत्ता की लिप्सा न हो, जिसकी प्रजा किसी अभाव का अनुभव न करती हो, जो ब्राह्मणों को मुँहमाँगा दान देता हो, जो जीवन में कभी कृतघ्न न हुआ हो, वह किसी ऋषि या महर्षि से भी महान् है।’
प्रलय (कृष्ण की आत्मकथा-VIII)
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