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‘‘वैसे ही जब हमें दिया काम भी पूरा हो जाएगा तब नियति चुपचाप, बिना किसीसे पूछे-जाँचे हमें उठा ले जाएगी। बहाने हजार बनते रह जाएँगे; चाहे युद्ध का बहाना बने, चाहे रोग का या किसी और का।’’
प्रलय (कृष्ण की आत्मकथा-VIII)
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