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‘‘अस्त्र तो एक निर्जीव पदार्थ है। संचालित तो वह बुद्धि से ही होता है। दुर्बुद्धि के हाथ में अस्त्र निरर्थक है—मरकट के हाथ में माणिक की तरह।’’
प्रलय (कृष्ण की आत्मकथा-VIII)
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