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पर मैंने कभी धर्म की स्थापना करनेवाले का स्वाँग नहीं किया। मैंने जो किया वह जीवन में किया। युद्ध में सारे पाप-द्वेष छूट जाते हैं, व्यक्ति बदल जाता है, उसके संबंध बदल जाते हैं। केवल युद्ध का ही नियम उसका नियम होता है। एकाध अवसर छोड़कर मैंने शायद ही कभी युद्ध के नियमों का उल्लंघन किया हो।’’
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Duryodhan
प्रलय (कृष्ण की आत्मकथा-VIII)
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