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पर वे संसारी होकर भी संसारी नहीं हैं, देही होकर भी विदेही हैं। यह स्थिति कठिन अवश्य है, पर असंभव नहीं। वे सोते-जागते, उठते-बैठते बस आपका ही नाम जपती हैं। आपकी छवि सदा उनके समक्ष रहती है। आपका कोई-न-कोई प्रतीक बड़े पूज्यभाव से अपने पास रखती हैं। किसीके पास आपकी मुरली है, किसीके पास आपकी माला है—यदि पूरी माला नहीं तो उसका मनका ही सही। किसीके पास आपका पीतांबर है—यदि पूरा नहीं तो उसका एक टुकड़ा ही सही। किसीने अपनी वह चोली सुरक्षित रखी है, जिसे कभी आपने खींचकर फाड़ा था। किसीके पास उन कुंज-लताओं की पत्तियाँ हैं, भले ही वे सूख गई हैं, जहाँ आपने केलिक्रीड़ाएँ की थीं। और नहीं तो उस स्थान की धूल तो है ...more
प्रलय (कृष्ण की आत्मकथा-VIII)
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