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मेरा शरीर घायल नहीं है, मित्र! पर मन बुरी तरह घायल है। बेतरह टूट चुका हूँ। अब न तन में शक्ति रही और न मन में।’’
प्रलय (कृष्ण की आत्मकथा-VIII)
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