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‘‘आँगन में उगा काँटा भी काँटा ही होता है। उसे निकालकर फेंक देना ही धर्म है। मेरा सिद्धांत स्पष्ट है। जहाँ तक हो, युद्ध टालते जाइए; पर यदि वह अनिवार्य हो जाए तो पूरी निर्ममता के साथ उसका सामना करना चाहिए।’’
प्रलय (कृष्ण की आत्मकथा-VIII)
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