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जैसे राधा का मेरे सिवा संसार में कोई नहीं था—और जो था, उसे छोड़कर वह मेरी हो गई थी वैसे ही छंदक का भी कोई नहीं था। उसे किसीको छोड़ना नहीं पड़ा। वह मेरा ही था और मुझमें ही समाविष्ट हो गया।’
प्रलय (कृष्ण की आत्मकथा-VIII)
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