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अर्जुन तुरंत चिल्लाया—‘‘आप भूल में हैं! अभी संध्या नहीं हुई है।’’ मैंने अर्जुन को डाँटा—‘‘जो प्रकृति तुम्हारे अनुकूल बन रही है, तुम उसी को नकार रहे हो! चुपचाप स्वीकार करो कि संध्या हो रही है, बल्कि हो गई है।’’
प्रलय (कृष्ण की आत्मकथा-VIII)
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