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विनाश के मूल में है आयुध और सर्जना के मूल में है कला। आयुध मृत्यु के लिए लालायित रहता है और कला जीवन का जय बोलती है। यदि आयुध के प्रति तुम्हारी जैसी घृणा पूरी मानव जाति को हो जाती तो यह पृथ्वी स्वर्ग हो जाती।’’
प्रलय (कृष्ण की आत्मकथा-VIII)
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