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अर्जुन की यह विशेषता थी कि जो निश्चय कर लेता था, वही करता था। उसकी दृष्टि सदा अपने लक्ष्य पर रहती थी। इसीसे वह कभी लक्ष्यभ्रष्ट नहीं हुआ।
प्रलय (कृष्ण की आत्मकथा-VIII)
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