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अनैतिकता के अरण्य में नैतिकता का एकमात्र शेष वृक्ष भी गिर गया। ध्वस्त होते मानव मूल्यों के सागर में संकल्प, दृढ़ता और कृतज्ञता का जलयान डूब गया। उसके इस महाप्रयाण पर मेरा मस्तक स्वतः झुक गया।
प्रलय (कृष्ण की आत्मकथा-VIII)
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