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पश्चात्ताप तो मैं कभी करता ही नहीं; क्योंकि पश्चात्ताप तो किसी भूल रूपी बीज का वृक्ष है। जब मैं स्वयं कर्ता नहीं तो भूल मुझसे क्या होगी! कर्ता तो कोई और है, मैं तो उसका ‘करण’ हूँ, माध्यम हूँ। जिसके लिए मैं माध्यम बना, यह शाप भी वही भोगेगा।’’
प्रलय (कृष्ण की आत्मकथा-VIII)
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