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‘जब माँ अपनी ममता को मारकर लोक-लज्जा के भय में पड़ जाती है तब माँ माँ नहीं रहती और न उसका बेटा बेटा ही रह जाता है। तब वह उसका गला भी दबा सकती है, उसे घूरे पर भी फेंक सकती है, उसे धारा में प्रवाहित भी कर सकती है।’
प्रलय (कृष्ण की आत्मकथा-VIII)
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