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जन्म के पूर्व से ही मनुष्य अपने कर्मों की शृंखला से आबद्ध है। पर संसार की दृष्टि हमारे कर्मों पर कम और उसके प्राप्त फल पर अधिक होती है। इसीलिए लोग कहते हैं कि जन्म के साथ मनुष्य का भाग्य उसके कपाल पर लिख दिया जाता है। वस्तुतः वह भाग्य नहीं, उसका कर्मफल है। परमात्मा ने हर व्यक्ति को किसी विशेष कर्म के लिए बनाया है। तुम्हें भी कुछ कर्मों का लंबा दायित्व मिला है। तुम अपना कर्म करो, वे आदिवासी स्त्रियाँ अपना कर्म कर रही हैं।’
प्रलय (कृष्ण की आत्मकथा-VIII)
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