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‘‘इसलिए कि मैं लूटनेवाले से भी नहीं लुटी थी। कुछ-न-कुछ शेष थी। आज तो ऐसी लुटी कि कुछ भी शेष न रह गई।’’
प्रलय (कृष्ण की आत्मकथा-VIII)
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