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मैं हर काम के लिए नियम बनाने के पक्ष में नहीं रहता; क्योंकि नियम स्वयं को बाँधने के लिए बनाए जाते हैं। इससे सामाजिक अनुशासन तो बढ़ता है, पर आत्मानुशासन दुर्बल हो जाता है। दूसरे, जिस क्षण नियम बनता है उसी क्षण उसके टूटने की संभावना का भी जन्म हो जाता है—जीवन के साथ मृत्यु की तरह। इसीलिए लोग मोक्ष चाहते हैं। इसीलिए मैं भी नियममुक्त स्थिति को सबसे अच्छी स्थिति मानता हूँ, जो केवल आत्मानुशासित हो। फिर युद्ध और प्रेम में नियम क्या? युद्ध में युद्ध करना और प्रेम में प्रेम करना ही नियम है।’’
प्रलय (कृष्ण की आत्मकथा-VIII)
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