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‘‘मरनेवाला मैं नहीं, मेरा शरीर होगा। उसे तो किसी-न-किसी दिन मरना ही है। फिर वह आज मरे या कल, क्या अंतर पड़ता है!’’
प्रलय (कृष्ण की आत्मकथा-VIII)
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