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‘‘ज्ञान-अज्ञान, पुण्य-पाप तथा सफलता-विफलता जहाँ एक ओर व्यक्ति के अपने कर्मों से जुड़े रहते हैं वहीं दूसरी ओर एक अज्ञात अदृश्य से भी। वही उसे करने की प्रेरणा देता है और उसे सँभालता भी है—कभी कृष्ण को भेजकर और कभी नेवले को।’’
प्रलय (कृष्ण की आत्मकथा-VIII)
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