P M

47%
Flag icon
धर्म तो समाज की देन है। धर्म लेकर व्यक्ति पैदा नहीं होता। हम अर्थ और काम लेकर पैदा होते हैं, धर्म समाज दे देता है—और तीनों के समन्वय से हम मोक्ष के लिए प्रयत्नशील होते हैं। इसलिए जब तक समाज है तब तक धर्म है। जब समाज ही छूट रहा हो, शरीर का अस्तित्व ही खतरे में पड़ गया हो, तब हम धर्म को सिर पर लादे हुए क्या करेंगे?’’
प्रलय (कृष्ण की आत्मकथा-VIII)
Rate this book
Clear rating