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‘‘तुम अपने क्रोध पर नियंत्रण करो। इतना अहंकार हितकर नहीं।’’ मैंने कहा, ‘‘और यह अच्छी तरह समझ लो कि न तुम किसी वंश का निर्माण कर सकते हो और न विनाश। यह कार्य प्रकृति का है। धरती अपना बीज अपने में सुरक्षित रखती है। ठीक इसी प्रकार का भ्रम परशुराम को भी था। उन्होंने अनेक बार धरती से क्षत्रियों को मिटा देने का दावा किया; पर आज तक क्षत्रिय नहीं मिटे और न परशुराम परंपरा मिटी।’’
प्रलय (कृष्ण की आत्मकथा-VIII)
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