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अब तुम वह रूप देखना, जब मेरी अस्मिता स्वयं मुझसे बाहर निकलकर तांडव करेगी। और जानते हो, सात्यकि, अधर्म व अन्याय के जंगल को जलाने के लिए धर्म एवं न्याय की एक चिनगारी काफी है।’’
प्रलय (कृष्ण की आत्मकथा-VIII)
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