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आप केवल वर्तमान के भोक्ता हैं—और वह वर्तमान, जो क्षण-क्षण में अतीत होता जा रहा है और अनचीन्हे, अनजाने भविष्य के प्रकोष्ठ से आ रहा है।’’
प्रलय (कृष्ण की आत्मकथा-VIII)
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