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तुम अकेले कहाँ हो! तुम्हारा पराक्रम तुम्हारे साथ है, तुम्हारी विद्या तुम्हारे साथ है, तुम्हारा धर्म तुम्हारे साथ है—और फिर मैं तो हूँ ही।’’
प्रलय (कृष्ण की आत्मकथा-VIII)
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