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चाचाजी, यह महायुद्ध उसी क्षण आरंभ हो चुका था जिस क्षण सूर्यपुत्र को उसकी माँ ने गंगा में प्रवाहित कर दिया—और वह भी लोक-लाज के भय से। उसका मातृत्व सामाजिक अवमानना का साहसपूर्वक सामना करने की शक्ति खो चुका था। ममता का इतना हृस! जब-जब मानव मूल्यों का ऐसा क्षरण होता है, युद्ध अवश्य पैदा होता है।’’
प्रलय (कृष्ण की आत्मकथा-VIII)
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