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‘वही राजमुकुट सत्ता के वैभव की गरिमा को सुरक्षित रख सकता है, जिसपर आचार्य-पग की धूलि लगी हो, आचार्य या उसके पुत्र की मस्तक-मणि नहीं।’’
प्रलय (कृष्ण की आत्मकथा-VIII)
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