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‘‘आप सबकी ममत्व भरी आत्मीयता के समक्ष मैं नतमस्तक हूँ। यदि मुझसे कभी कोई भूल हुई हो तो क्षमा कीजिएगा।’’
प्रलय (कृष्ण की आत्मकथा-VIII)
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