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व्यक्तिगत रूप से कुष्ठमुक्त होने से उसके मनस्ताप का भले ही शमन हो जाए, पर समाज पर पड़ी उस पाप की छाया तो बनी ही रहेगी।
प्रलय (कृष्ण की आत्मकथा-VIII)
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