P M

65%
Flag icon
‘‘संन्यास तो आप लीजिएगा न, समाज आप छोड़ दीजिएगा न; पर ये आवाजें आपको कहाँ छोड़ने वाली हैं!’’ मैंने पूछा, ‘‘क्या इस महासमर की भयंकरता, इसकी क्रूरता आपका मन और मस्तिष्क छोड़ सकता है? यह दुःख स्वप्न बनकर आपको छाएगा और आपका सोना हराम कर देगा। आग से भागने से आग शांत नहीं होती, वह तो बुझाने से शांत होगी।’’
प्रलय (कृष्ण की आत्मकथा-VIII)
Rate this book
Clear rating