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‘‘देखो, यह न्याय की ध्वनि सुनाई दे रही है।’’ मेरा व्यंग्यात्मक उद्घोष कौरव पक्ष में बड़ी गहराई तक डूब गया।
प्रलय (कृष्ण की आत्मकथा-VIII)
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