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‘‘प्रतिशोध से प्रतिशोध का अंत नहीं होता। एक आग दूसरी आग को जलाती है। इसके विरुद्ध क्षमा में स्थायी शांति है।’’
प्रलय (कृष्ण की आत्मकथा-VIII)
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