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‘‘जिन्हें तू मारे जाने वाले समझता है, वे पहले से ही मरे हुए हैं। यदि ऐसा न होता तो यह स्थिति न आती। और मृत्यु तो जीवन का रूपांतर है। आगामी जीवन का द्वार है। न कोई किसीको मारता है और न मरता है। सब अपने कर्मों का फल भोगते हैं। तू भी अपने कर्मों का फल भोगेगा। ये भी भोगेंगे। तू चाहे कि इसे रोक ले, तो यह नहीं हो सकता।
प्रलय (कृष्ण की आत्मकथा-VIII)
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