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पर क्या करूँ, मैं भी मनुष्य हूँ। मनुष्य ने युद्ध कभी नहीं चाहा। उसकी मूल प्रवृत्ति युद्ध के विरुद्ध ही रही। फिर भी युद्ध का अस्तित्व धरती पर तब से है जब से मनुष्य है—और तब तक रहेगा जब तक मनुष्य रहेगा; क्योंकि उसका अहंकार रहेगा, उसका द्वेष रहेगा, उसकी ईर्ष्या रहेगी, उसका लोभ रहेगा और रहेगी अनंत सुख की उसकी लिप्सा।
प्रलय (कृष्ण की आत्मकथा-VIII)
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