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नियम तो सामान्य मस्तिष्क देखता है। क्रोध और आवेश में तो वह असामान्य हो जाता है, तब उसे कुछ दिखाई नहीं देता। यदि नियम की ओर वह देखे तो उसे आवेश ही न आए। वैसे भी मैं मर्यादामुक्त व्यक्ति हूँ। कोई भी मर्यादा और नियम मुझे बाँध नहीं सकते। केवल आत्मानुशासन ही मेरे कर्मों पर नियंत्रण करता है।’’
प्रलय (कृष्ण की आत्मकथा-VIII)
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