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‘‘यहाँ मैं तुमसे विषादयोग की शिक्षा लेने नहीं आई हूँ! फिर ज्ञान बुद्धि का मामला है और मोह हृदय का। दोनों के कार्यक्षेत्र अलग हैं, दोनों का प्रभाव अलग है। जब गोपियों से ऐसी ही बात उद्धव ने कही थी, तब उसके ज्ञान को उन वियोगिनियों ने धूल में मिला दिया था। आज भी तुम्हारा यह ज्ञान विधवाओं के आँसुओं में बह जाएगा।’’ इतना
प्रलय (कृष्ण की आत्मकथा-VIII)
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