धर्म तभी तक है जब तक जीवन है। जब जीवन का अस्तित्व खतरे में पड़ता है तब धर्म का अस्तित्व भी खतरे में पड़ जाता है। ऐसे समय धर्म यदि बंधन की तरह सामने आ जाए तो उससे मुक्त होना ही जीवनधर्म है। इसलिए अब तक जो हुआ, वह हुआ; अब हमें भी युद्ध के नियमों की परवाह किए बिना युद्ध करना चाहिए। इस संदर्भ में आपकी क्या राय है?’’