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‘बस-बस, अब बस करो। तुमने तर्क के इतने तीर मारे कि मुझे जब भी तुम्हारी याद आएगी, मैं पश्चात्ताप की पीड़ा से छटपटाता रहूँगा। संप्रति तुम्हारे इन प्रश्नों का मेरे पास कोई उत्तर नहीं है।’
प्रलय (कृष्ण की आत्मकथा-VIII)
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