P M

84%
Flag icon
प्रेमी भिक्षा नहीं, प्रतिदान माँगता है। वह समर्पित हो सकता है, पर दास नहीं होता। दासता भी करना उसे स्वीकार है, पर क्रीत दासता उसे पसंद नहीं। प्रेम तो हृदय का सौदा है, वह बराबर का सौदा है। आग दोनों ओर बराबर लगनी चाहिए। यदि किसी ओर से आकर्षण है तो प्रत्याकर्षण होना चाहिए। प्रेमी चरणों पर सिर तो रख सकता है, पर पत्थर पर सिर नहीं मार सकता।’’
प्रलय (कृष्ण की आत्मकथा-VIII)
Rate this book
Clear rating