P M

81%
Flag icon
अब मैं समझता हूँ, वह (कर्ण) कहीं बाहर से नहीं आया था। वह मेरे भीतर ही था—और एकांत का लाभ उठाते हुए मेरे अर्द्धचेतन में बैठा हुआ कर्ण स्वयं बाहर निकल आया था।
प्रलय (कृष्ण की आत्मकथा-VIII)
Rate this book
Clear rating