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‘‘जिनके आँसू कोई नहीं पोंछ पाता, समय उनके आँसू पोंछ देता है, बुआजी! मनुष्य किसी और का नहीं, अपने ही कर्मों का फल पाता है।’’
प्रलय (कृष्ण की आत्मकथा-VIII)
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