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अशांत मन की आत्मा शरीर को जल्दी नहीं छोड़ती। यदि छोड़ती है तो वह अशांत ही रहती है। अशांत आत्मा अशांत मन से अधिक घातक होती है।’’
प्रलय (कृष्ण की आत्मकथा-VIII)
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