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मनुष्य जब किसी और का दास होता है तो वह मुक्त होने की चेष्टा भी करता है और मुक्त हो भी सकता है। पर वह जब स्वयं अपना ही दास हो तब प्रथम वह मुक्त होना नहीं चाहता और फिर चाहकर भी वह मुक्त हो नहीं पाता।
लाक्षागृह (कृष्ण की आत्मकथा -IV)
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