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पारिवारिक संदर्भ में सोचते समय व्यक्ति अपनी निजता परिवार को सौंप देता है। ऐसे में परिवार का लिया गया निर्णय वह अपना निर्णय समझता है। इसके लिए उसे अधिक व्यग्र नहीं होना चाहिए और न उसके लिए पश्चात्ताप करना चाहिए; क्योंकि वह निर्णय उसका निजी नहीं होता।’’
लाक्षागृह (कृष्ण की आत्मकथा -IV)
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