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‘यह तुम्हारी आसक्ति नहीं है। आसक्ति में तो स्वार्थ होता है। इसमें तुम्हारा स्वार्थ क्या है? यह तो तुम्हारा कर्तव्य है। तुम धर्म की स्थापना के लिए धरती पर भेजे गए हो। आज पूरे आर्यावर्त्त की जीवन शैली अधर्म से प्रभावित है।’
लाक्षागृह (कृष्ण की आत्मकथा -IV)
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